मुंबई की महिला ने तलाक के बाद रखी हैरान कर देने वाली मांगें – सुप्रीम कोर्ट में दर्ज की गई याचिका!

सुप्रीम कोर्ट में महिला ने की भरण-पोषण में लक्ज़री मांग – कोर्ट भी रह गया दंग!
मुंबई से सामने आए एक अजीबो-गरीब तलाक केस में एक महिला ने तलाक के बाद भरण-पोषण (maintenance) के लिए ऐसी मांगें रखीं, जिन्हें सुनकर सुप्रीम कोर्ट तक हैरान रह गया।
महिला ने अपने पति से गुज़ारा भत्ता मांगते हुए याचिका में कहा कि वह:
- एक BMW कार
- 12 करोड़ रुपये नकद
- और मुंबई में एक फ्लैट की हकदार है।
महिला है IT प्रोफेशनल, फिर भी रखी आलीशान मांगें
इस केस की खास बात यह है कि याचिकाकर्ता महिला खुद एक IT प्रोफेशनल है और उसने MBA किया हुआ है। इसके बावजूद उसने यह दलील दी कि वह कार्य नहीं कर सकती क्योंकि वह स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) जैसी मानसिक बीमारी से पीड़ित है।
उसका यह भी दावा है कि उसका पति अमीर और संपन्न व्यक्ति है, इसलिए वह इन मांगों को पूरा करने में सक्षम है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया – पढ़ी-लिखी हो तो काम करो!
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और उनके साथ मौजूद समग्र बेंच इस याचिका को देखकर चौंक गई।
जस्टिस गवई ने साफ शब्दों में कहा कि अगर महिला इतनी पढ़ी-लिखी है और IT सेक्टर में काम कर चुकी है, तो वह आत्मनिर्भर हो सकती है और उसे खुद से कमाई करनी चाहिए।
मांगों को कोर्ट ने किया खारिज, फैसला रखा गया सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने महिला की मांगों को अनुचित मानते हुए उसे फौरन खारिज कर दिया।
हालांकि, कोर्ट ने अंतिम निर्णय अभी तक नहीं सुनाया है और इसे अनामत (reserved) रखा गया है।
यह केस अब सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है और लोग यह बहस कर रहे हैं कि क्या कोई पत्नी तलाक के बाद इस तरह की लग्ज़री डिमांड कर सकती है?
इस केस ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि भरण-पोषण की आड़ में क्या कोई इतना बड़ा आर्थिक लाभ मांग सकता है, जबकि वह खुद पढ़ा-लिखा और कामकाजी हो? सुप्रीम कोर्ट का आखिरी फैसला आने तक यह मामला बहस का विषय बना रहेगा।
मुंबई की इस महिला की तलाक के बाद रखी गई मांगें और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया ने देश भर में बहस छेड़ दी है। एक तरफ जहां महिला ने अपनी मानसिक बीमारी का हवाला देते हुए अपने पति से भारी भरकम भरण-पोषण की मांग की, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि पढ़ी-लिखी और सक्षम महिला को आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करना चाहिए। इस केस ने समाज में महिलाओं के अधिकारों और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन पर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया है।
महिला की मांगें चाहे कितनी भी बड़ी और असामान्य क्यों न लगें, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि सिर्फ बीमारी का बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। एक IT प्रोफेशनल और MBA होल्डर महिला के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार काम करे और आत्मनिर्भर बने। कोर्ट ने इस मामले में यह भी रेखांकित किया कि पति की संपत्ति और आर्थिक स्थिति के बावजूद, महिला की प्राथमिक जिम्मेदारी अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने की होनी चाहिए।
यह मामला समाज के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे तलाक के बाद भरण-पोषण की मांगों को संतुलित और न्यायसंगत तरीके से देखा जाना चाहिए। जहां महिलाओं के अधिकारों का सम्मान होना जरूरी है, वहीं उनकी जिम्मेदारियों को भी समझना आवश्यक है। आत्मनिर्भरता न केवल महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता देती है बल्कि उन्हें समाज में सम्मान और सुरक्षा का भी एहसास कराती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी एक संदेश है कि शिक्षा और कौशल के जरिए हर महिला अपने लिए बेहतर भविष्य बना सकती है। मानसिक बीमारी जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए भी, सही उपचार और प्रयास से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं। इस फैसले से यह भी साफ होता है कि कानून के सामने कोई भी पक्ष बिना ठोस कारणों के अनुचित मांगें नहीं कर सकता।
अंततः, यह केस महिलाओं को प्रेरित करता है कि वे अपने अधिकारों के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी समझें और जीवन में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाएं। समाज को भी महिलाओं के उत्थान में सहयोग करना चाहिए, ताकि हर महिला अपने दम पर एक सशक्त और स्वतंत्र जीवन जी सके। इस मामले ने महिलाओं और समाज दोनों के लिए एक नई सोच और समझ का द्वार खोला है, जो आने वाले समय में समानता और न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा।